कैसा है ये गठबंधन ?

अभी कल ही सुनने में आया कि सपा बीजेपी को रोकने के लिये बसपा से हाथ मिलाने को तैयार हैं, अगर ऐसा हुआ तो कांग्रेस का क्या होगा ? क्या बीजेपी को रोकने के लिये तीनों पार्टियां हाथ मिला लेंगी ?

क्या कभी सोचा है कि ये सब क्यों हो रहा है, क्या ये बीजेपी सरकार की नीतियों का असर है या फिर पार्टियों के स्वयं के अस्तित्व को बचाने की जंग है ।

नोटबंदी, जिसका विरोध ज्यादातर राजनीतिक पार्टियों ने किया, कुछ राजनेताओं ने तो बड़ा हल्ला गुल्ला किया जैसे उनके घर ही सेंध लग गई हो, का असर उल्टा ही नजर आ रहा है, जनता हर जगह बीजेपी शीर्ष नेतृत्व के साथ खड़ी दिख रही है । 

बताया गया था कि नोटबंदी से भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर की रीढ़ टूट जायेगी पर सभी आंकलन गलत सिद्ध हुए । अर्थव्यवस्था की दर में निम्न दर्शित वृद्धि हुई : 

क्या कारण है कि विकास के पथ पर अग्रसर बीजेपी सरकार को नये-२ हथकंडे अपनाकर रोका जा रहा है, अब तो एक नया चलन प्रचलन में है कि जो भी बीजेपी सरकार की नीतियों या उनके कार्यों की तारीफ करे वह बीजेपी या संघ समर्थक कहलाता है । आतंकवादियों की फॉंसी का विरोध करने वालों, उनकी विचारधारा का समर्थन करने वालों और यहां तक कि देश विरोधी नारे लगाने वालों को अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता भारत में है पर बीजेपी सरकार के कार्यों की सराहना करने से आप संघी हो जाते हैं, आपको “राष्ट्रवादी” – एक गाली के रूप में कहा जाता है । 

कौन फैला रहा है ये भ्रम ? क्या है इनका उद्देश्य ? क्या राष्ट्रविरोधी नारे लगाने वाले और उनसे राजनीतिक फायदे उठाने वाले समर्थक यह तय करेंगे कि राष्ट्रवाद की परिभाषा क्या है ?

स्वतंत्र मानसिकता का मतलब यह बिल्कुल नहीं होना चाहिये कि हम अपने देश से ऊपर किसी देशद्रोही को समझें और जो दिख रहा है उसके भी सबूत की मांग करें ।

हमारे देश की सेना हमारा गौरव है पर उनके ऊपर भी सवाल उठाना, कहां तक जायज है ? क्या सेना को जो बीजेपी सरकार ने यथोचित कार्यवाही करने की छूट दी है वो कई पार्टियों को हजम नहीं हो रही ….

क्या है असली सच्चाई ? क्या प्रधानमंत्री अपने आने वाली सात पीढियों के लिये घपले और घोटाले कर रहे हैं ? क्या स्वार्थ है उनका ?

जरा सोचिये, जल्द ही फिर कलम चलेगी ।

शुभ संध्या ।

आपका – मोहित