उम्मीद ! किससे और क्यों ?

​उम्मीदों से बंधा एक जिद्दी परिंदा है, इंसान । जो घायल भी उम्मीदों से है और, जिन्दा भी उम्मीदों पर है ।।

“रात के समय एक दुकानदार अपनी दुकान बन्द ही कर रहा था कि एक कुत्ता दुकान में आया, उसके मुॅंह में एक थैली थी, जिसमें सामान की लिस्ट और पैसे थे …

दुकानदार ने पैसे लेकर सामान उस थैली में भर दिया …

कुत्ते ने थैली मुॅंह मे उठा ली और चला गया …

दुकानदार आश्चर्यचकित होकर कुत्ते के पीछे पीछे गया ये देखने की इतने समझदार कुत्ते का मालिक कौन है ….

कुत्ता बस स्टाॅप पर खडा रहा, थोडी देर बाद एक बस आई जिसमें चढ गया ..

कंडक्टर के पास आते ही अपनी गर्दन आगे कर दी, उस के गले के बेल्ट में पैसे और उसका पता भी था ..

कंडक्टर ने पैसे लेकर टिकट कुत्ते के गले के बेल्ट मे रख दिया ..

अपना स्टाॅप आते ही कुत्ता आगे के दरवाजे पे चला गया और पूॅंछ हिलाकर कंडक्टर को इशारा कर दिया और बस के रुकते ही उतरकर चल दिया …

दुकानदार भी पीछे पीछे चल रहा था …

रात ज्यादा हो गई थी, कुत्ता घर पहुँचा और घर का दरवाजा अपने पैरों से २-३ बार खटखटाया …

अन्दर से उसका मालिक आया और लाठी से उसकी पिटाई कर दी ..

दकानदार ने मालिक से इसका कारण पूछा .. ??

मालिक बोला .. “इसने मेरी नींद खराब कर दी, दरवाजा सुबह नहीं खटखटा सकता था, गधा”

जीवन की भी यही सच्चाई है ..

आपसे लोगों की अपेक्षाओं का कोई अन्त नहीं है ..

जहाँ आप चूके वहीं पर लोग बुराई निकाल लेते हैं, सच्चाई जानने का प्रयास भी नहीं करते हैं कोई बताना चाहे तो भी नजरंदाज कर देते हैं यहां तक कि एक मौका भांपकर पिछली सारी अच्छाईयों को भूल जाते हैं ।

इसलिए अपने कर्म अपने हिसाब से करते चलो, चाहे आपके अपने हों या फिर अन्य समाज के लोग, कोई भी आपसे कभी संतुष्ट नहीं हो पायेंगे ।।”

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Mohit K Sharma

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